समन्वित ग्रामीण विकास की दशाएं: गाजीपुर जनपद (उ.प्र.) का एक प्रतीक अध्ययन

 

अजीत कुमार यादव

प्राचार्य, गुरूकुल महाविद्यालय पत्थलगांव जिला-जशपुर (छ..)

*Corresponding Author E-mail: yadavak2010@rediffmail.com

 

 

सारांश-

प्रस्तुत शोध प्रपत्र गाजीपुर जनपद में समन्वित ग्रामीण विकास स्तर से सम्बंधित है। क्षेत्र मध्यगंगा मैदान के उपजाऊ भू-भाग में स्थित होने के कारण यहां पर उपजाऊ एवं जलोढ़ मिट्टी पायी जाती है। यहां समन्वित ग्रामीण विकास के चरों का वितरण असमान रूप में पाया जाता है। क्षेत्र के उŸारी एवं दक्षिणी भागों में ग्रामीण विकास के चरों की अधिकता के कारण अतिउच्च श्रेणी का एवं उŸारी-पूर्वी एवं दक्षिणी-पूर्वी भागों में न्यून श्रेणी का ग्रामीण विकास स्तर पाया जाता है। यदि क्षेत्र में ग्रामीण विकास के चरों का बडे पैमाने पर विस्तार किया जाये तो समन्वित ग्रामीण विकास के लक्ष्य को पूर्णरूपेण सार्थक किया जा सकता है।

 

भूमिका- समन्वित ग्रामीण विकास ग्रामीण परिवेश के गुणात्मक परिवर्तन हेतु नियोजन एवं क्रिया चयन की एक संकल्पना है, जो ग्रामीणों के कल्याण एवं सामाजिक एकीकरण की एक प्रक्रिया है, जिसे प्राकृतिक आर्थिक संस्थागत एवं प्राविधिक अन्तर्सम्बन्धों एवं उनके भावी परिवर्तन को संयोजित कर प्राप्त किया जा सकता है। इस प्रकार अत्यधिक उत्पादन, अधिकतम रोजगार एवं आय के अपेक्षाकृत समान वितरण के साथ ही साथ निर्बल वर्ग की उत्पादन प्रक्रिया में अधिकाधिक सहभागिता एवं न्याय संगत वितरण का प्रयास ही समन्वित ग्रामीण विकास का उद्देश्य है (शर्मा एवं मल्होत्रा, 1977)1। 

 

समन्वित ग्रामीण विकास को क्षेत्रीय विकास से अलग नहीं माना जा सकता है। क्योंकि क्षेत्रीय विकास हमेशा समन्वित होता है जिसमें ग्रामीण, नगरीय एवं विभिन्न प्रखण्ड सम्मिलित रहते हैं। यहां ग्रामीण विकास पर बल देने का आषय यह है कि ग्रामीण अर्थतन्त्र में संरचनात्मक रूपान्तरण ही ग्रामीण विकास है। संरचनात्मक रूपान्तरण के अन्तर्गत क्षेत्र विशेष में उपलब्ध ग्रामीण अर्थतन्त्र के अनेक अंगों से सम्बन्धित है। ग्रामीण विकास के अन्तर्गत कृषि अवस्थापनात्मक, औद्योगिक एवं सामाजिक अर्थतन्त्र सभी सम्मिलित किये जाते हंै। ग्रामीण अर्थतन्त्र में कृषि की प्रधानता ही आर्थिक विकास का मुख्य आधार है। ग्रामीण विकास का प्रगतिशील स्तर कृषि अर्थतन्त्र एवं उससे सम्बन्धित तथ्यों का संरचनात्मक रूपान्तरण से सम्बन्धित है। किसी भी क्षेत्र में जनसंख्या और उपलब्ध संसाधनों के अन्तक्र्रिया का परिणाम ही आर्थिक विकास है। इसलिए समन्वित ग्रामीण विकास के अन्तर्गत क्षेत्रीय संसाधन एवं सम्बन्धित जनसंख्या का संतुलित अर्थतंत्र सम्मिलित है। इस तरह समन्वित ग्रामीण विकास विभिन्न आयामों का समन्वित प्रतिरूप है। समन्वित ग्रामीण विकास को समन्वित ग्रामीण क्षेत्रों की विकास योजना के रूप में परिभाषित किया जा सकता है जिसके अन्तर्गत सिंचाई की सुविधाओं में वृद्धि, विद्युतीकरण, कृषि हेतु उन्नतशील तकनीकों इत्यादि पर विशेष ध्यान दिया जाता है। वस्तुतः ग्रामीण विकास को किसी एक खण्ड के विकास के रूप में नहीं देखा जाना चाहिए (पाण्डेय, 1985)2

अध्ययन क्षेत्र-

गाजीपुर जनपद उत्तर प्रदेष एवं वाराणसी मण्डल के पूर्वी भाग में 25019 से 25054 उत्तरी अक्षांष एवं 8304 से 83058 पूर्वी देषान्तर के मध्य स्थित है। यह जनपद पूर्व में बिहार राज्य के बक्सर जनपद से, पष्चिम में जौनपुर, दक्षिण में चन्दौली, दक्षिण-पष्चिम में वाराणसी, उत्तर-पष्चिम में आजमगढ,़ उत्तर में मऊ एवं उत्तर-पूर्व में बलिया जनपद से घिरा हुआ है। जनपद का कुल भौगोलिक क्षेत्रफल 3,377 वर्ग किमी. है, जो राज्य के कुल भौगोलिक क्षेत्रफल का 1.5 प्रतिषत है। इस जनपद की पूर्व-पष्चिम की ओर लम्बाई 89 किमी. एवं उत्तर-दक्षिण की ओर चैड़ाई 59 किमी. है। प्रषासनिक दृष्टिकोण से गाजीपुर जनपद 5 तहसीलों, 16 विकासखण्डों, 193 न्यायपंचायतों, 1050 ग्रामपंचायतों, 3364 ग्रामों (2665 आबाद ग्राम एवं 699 गैर आबाद ग्राम) में विभक्त है। 2011 की जनगणना के अनुसार जनपद की कुल जनसंख्या 36,22,727 है, जिसमें 18,56,584 पुरूष एवं 17,66,143 महिलायें हैं। यहां औसत जनघनत्व 1072 व्यक्ति/वर्ग किमी, साक्षरता 74.27ः एवं लिंगानुपात 951 है।

 

समन्वित ग्रामीण विकास की संकल्पना-

भूगोल के अन्तर्गत विकास अथवा आर्थिक क्रिया-कलाप का क्षेत्रीय सम्बन्ध होता है। अर्थात किसी क्षेत्र अथवा प्रदेश के सन्दर्भ में सम्बन्धित क्षेत्र और जनसंख्या के आधार पर विभिन्न संरचनात्मक तत्वों का रूपान्तरण ही ग्रामीण विकास है। संरचनात्मक तत्वों के अन्तर्गत अर्थतन्त्र के विभिन्न आयाम आर्थिक, सामाजिक, संस्थागत और राजनीतिक तन्त्र सम्मिलित होते है। किसी भी ग्रामीण क्षेत्र में इन्ही तत्वों के समयानुसार और सापेक्षिक रूप में गुणात्मक एवं मात्रात्मक परिवर्तन को ही समन्वित ग्रामीण विकास माना जा सकता है। इसी क्षेत्रीय अथवा प्रादेशिक विकास की संकल्पना का प्रारम्भ अर्थशास्त्र में सबसे पहले हुआ है, जिसमें एडम स्मिथ व रिकार्डो की शास्त्रीय संकल्पनायें माक्र्स एवं एंजिल्स की संकल्पनायें तथा नवीन पूंजीवादी संकल्पनाएॅ सम्मिलित हैं। द्वितीय विश्व युद्ध के बाद भूगोलवेत्ताओं ने आर्थिक विकास को ग्रामीण क्षेत्र के संदर्भ में अध्ययन करना प्रारम्भ किया। हार्टशोर्न3 ने 1960 में विकास की क्षेत्रीय संकल्पना को स्पष्ट करते हुए यह व्यक्त किया कि विकास एक निरपेक्ष शब्द नहीं है, बल्कि यह एक सापेक्षिक अर्थ वाला शब्द है। इनके अनुसार विकास की कोई अन्तिम सीमा नहीं है। यह किसी क्षेत्र अथवा समुदाय के सन्दर्भ में तुलनात्मक रूप में प्रयोग किया जा सकता है।

 

समन्वित ग्रामीण विकास का तात्पर्य भौगोलिक रूप में ग्रामीण क्षेत्र के परिवेश के ऐसे रूपान्तरण से है जिसमें समाजिक आर्थिक संस्थागत तत्वों तथा उत्पादन प्रक्रिया और जनसंख्या के मध्य समन्वय स्थापित करके उनके जीवन स्तर में मात्रात्मक एवं गुणात्मक परिवर्तन लाया जा सकता है। इस तरह समन्वित ग्रामीण विकास विभिन्न तत्वों के गुणात्मक एवं मात्रात्मक परिवर्तन हेतु समन्वित ग्रामीण विकास नियोजन एवं क्रियान्वयन की एक संकल्पना है, जो मनुष्य के सर्वांगीण कल्याण से सम्बन्धित है और मानव कल्याण के इस स्तर को प्राकृतिक, आर्थिक, संस्थागत एवं प्राविधिकी अन्तर सम्बन्धिों को उनको भाव्यता रूपान्तरण को संयोजित करके प्राप्त किया जा सकता है (पाण्डेय एवं तिवारी, 1989)4

 

समन्वित ग्रामीण विकास किसी क्षेत्र में सामाजिक-आर्थिक क्रियाओं के समुचित वितरण एवं अवस्थिति से सम्बन्धित है, जिससे उसका संतुलित विकास हो सके। साथ ही यह प्रत्येक के लिए न्यूनतम एवं जहंा तक संभव हो उच्च स्तर तक से सम्बन्धित है। इस प्रकार ग्रामीण क्षेत्र का संतुलित विकास करके उनके जीवन की गुणवक्ता में वृद्वि करके क्षेत्र का विकास संभव है (तिवारी, 1998)5। ग्रामीण विकास वास्तव में सामाजिक-आर्थिक विकास का ही एक अंग है। लेकिन इसमें क्षेत्र विषेष के सन्दर्भ में ग्रामीण भूदृष्य के रूपान्तरण पर बल दिया जाता है। एक सीमा तक इसको समन्वित ग्रामीण विकास का पर्याय माना जा सकता है। यद्यपि ग्रामीण विकास को किसी नगरीय विकास के सन्दर्भ में अलग नहीं किया जा सकता है। क्योंकि विकास प्रक्रिया किसी भी क्षेत्र में समन्वित रूप में घटित होती हैं, जिसमें ग्रामीण अथवा नगरीय दोनो संरचनात्मक रूप में होते हैं। इसलिए समन्वित ग्रामीण विकास में ग्रामीण सामाजिक एवं आर्थिक तंत्र रूपान्तरित होता है, (आर्य,1999)6

 

ग्रामीण क्षेत्रों में विविध सेवाओं की उपलब्धता, सामाजिक परिवर्तन एवं अन्य अवस्थापनात्मक तत्वों का अध्ययन समन्वित ग्रामीण विकास का प्रमुख लक्ष्य है। समन्वित ग्रामीण विकास की संकल्पना कृषि की उत्पादकता में वृद्धि के साथ ही भू-विन्यासगत ग्रामीण तंत्र के सर्वांगीण विकास से सम्बन्धित है, जिसमें ग्रामीण जनसंख्या की मूलभूत आवश्यकताओं की पूर्ति के साथ स्वास्थ्य, षिक्षा, मनोरंजन, प्रषासनिक एवं सांस्कृतिक, औद्योगिक आदि का प्राविधान एवं विभिन्न सामाजिक वर्गोे के विकास के समान अवसर उपलब्ध कराना ही समन्वित ग्रामीण विकास के प्रमुख उद्देश्य हैं, (यादव, 2000)7

 

समन्वित ग्रामीण विकास एक ऐसी प्रक्रिया है जिसके द्वारा मानव अपने परिवेष का परिष्कार करता है। इस अर्थ में विकास सम्पूर्ण निवास्य के प्रत्यावर्तन का पर्याय है। यद्यपि किसी भी देष या प्रदेष, नगरीय अथवा ग्रामीण अघिवास परस्पर अभिन्न ढंग से कार्यात्मक एवं सांस्कृतिक सामाजिक अन्तर्सम्बन्ध में बधे होते हैं, जो समन्वित ग्राामीण विकास का नवीन विकासात्मक प्रतिरूप निरूपित करते है (यादव, 2008)8

 

अध्ययन क्षेत्र में समन्वित ग्रामीण विकास प्रतिरूप-

भौगोलिक रूप में समन्वित ग्रामीण विकास के विभिन्न मांडल प्रस्तुत किये गये हंै। प्रस्तुत अध्ययन क्षेत्र के अर्थतन्त्र का आधार कृषि है, क्योंकि इस पर 80ः से अधिक जनसंख्या निर्भर है। इसीलिए समन्वित ग्रामीण विकास के प्रतिरूप को ज्ञात करने के लिए कृषि विकास प्रतिरूप ज्ञात करना आवश्यक है। जबकि समन्वित ग्रामीण विकास में कृषि के अतिरिक्त अन्य आयाम भी सम्बन्धित होते हैं। अध्ययन क्षेत्र जैसे लघु ग्रामीण क्षेत्र के सम्बन्धि में विकासात्मक प्रवृत्तियों का प्रसार विभिन्न सामाजिक सुविधाओं के वितरण से भी होता है। भौगोलिक रूप से कृषि प्रधान अर्थतन्त्र वाले ग्रामीण क्षेत्रों में तृतीय कार्यो को संचालित करने वाले मार्ग संगम केन्द्रों का भी विकास होता है। ग्रामीण क्षेत्रीय अन्तक्र्रिया के कारण ऐसे सेवा केन्द्र ही समन्वित ग्रामीण विकास में अपना योगदान देते है। इसीलिए अध्ययन क्षेत्र में समन्वित ग्रामीण विकास की दशायें ज्ञात करने के लिए कृषि, औद्योगिक, अवस्थापनात्मक, सामाजिक एवं आर्थिक विकास के समन्वित प्रतिरूप को ज्ञात किया गया है।

 

समन्वित विकास के चर-

किसी क्षेत्र के सम्पूर्ण भाग का विकास करना ही समन्वित ग्रामीण नियोजकों का प्रमुख उद्देश्य है। इसलिए क्षेत्र में विद्यमान सुविधाओं को ध्यान में रखकर ही विकास की प्रक्रिया निर्वाध गति से संचालित होती रहती है। समन्वित ग्रामीण विकास से अभिप्राय है, ग्रामीण क्षेत्रों में रहने वाले अनेकानेक कम आय वर्ग के लोगों के जीवन स्तर में सुधार लाना और उनके विकास को आत्मपोषित बनाना ही समन्वित ग्रामीण विकास का लक्ष्य है। समन्वित ग्रामीण विकास की अवधारणा के अन्तर्गत ग्रामीण क्षेत्रों में प्राकृतिक एवं मानवीय संसाधनों के सर्वोत्तम उपयोग द्वारा ग्रामीण जीवन की गुणवत्ता में सुधार का समावेश किया जाता है। इस उद्देश्य की पूर्ति के लिए ग्रामीण क्षेत्रों में रहने वाले अल्प आय वर्ग के लोगों के जीवन स्तर में सुधार लाकर उसके विकास के क्रम को आत्मपोषित बनाने के प्रयास किये जाते है। समन्वित गा्रमीण विकास वस्तुतः एक ऐसी व्यूह रचना है जो ग्रामीण जनता विशेषकर निर्धन ग्रामवासियों के सामाजिक-आर्थिक जीवन को उन्नत करने के लिए बनायी गयी है। समन्वित ग्रामीण विकास स्तर ज्ञात करने हेतु चरों के निर्धारण में प्राथमिक एवं द्वितीयक ओकड़ों का उपयोग किया गया है। चयनित चरों का सांख्यिकीय विधि के अंर्तगर्त  ैबवतम विधि का उपयोग करके विकासखण्डों को निम्न श्रेणियों में विभक्त करके विष्लेषण किया गया है।

 

कृषित क्षेत्र-

कृषि विकास का प्रमुख आधार है। क्षेत्र में औसत कृषित क्षेत्र 76.86ः है। यहां वाराचवर विकासखण्ड में 81.78, मुहम्मदाबाद में 81.49, विरनों में 80.89ः एवं गाजीपुर विकासखण्ड में 67.7ः भू-भाग पर कृषि कार्य किया जाता है।

 

सिंचित क्षेत्र-

सिंचित क्षेत्र कृषि उत्पादकता एवं कृषि विकास का आधार है,। क्षेत्र में औसत शुद्व सिंचित क्षेत्र 84ः है। यहां मनिहारी विकासखण्ड में 96.90, विरनों में 95.40ः तथा भांवरकोल विकासखण्ड में 50.50ः भू-भाग सिंचित है।

 

एक बार से अधिक बोया गया क्षेत्र-

बढ़ती हुई जनसंख्या के भरण-पोषण हेतु क्षेत्र में एक बार से अधिक फसलें उगायी जाती हैं। यहंा एक से अधिक बार बोये गये क्षेत्र का औसत 62.70ः है। जमानियां विकासखण्ड में 87.82ः एवं रेवतीपुर विकासखण्ड मे 26.21ः भू-भाग पर एक से अधिक बार फसलें उगायी जाती है।

 

प्रति हेक्टेयर खाद्यान्न उत्पादन-

कृषक का प्रमुख लक्ष्य क्षेत्र में उत्पादन की मात्रा में वृद्धि करना जिसके कारण कृषि विकास स्तर को सुनियोजित किया जा सके। क्षेत्र में प्रति हेक्टेयर खाद्यान्न का औसत 19.11 कुन्तल/हेक्टेयर है। रेवतीपुर विकासखण्ड में 20.52 कुन्तल/हेक्टेयर, सादात में 20.32, कासिमाबाद मंे 20.26 मनिहारी में 20.18 एवं भांवरकोल विकासखण्ड में प्रति हेक्टेयर खाद्यान्न उत्पादन 15.72 कुन्तल/हेक्टेयर है जबकि प्रदेष का औसत खाद्यान्न उत्पादन 19.65 कुन्तल/हेक्टेयर है।

 

प्रति व्यक्ति खाद्यान्न उपलब्धता-

प्रति व्यक्ति खाद्यान्न उपलब्धता ही कृषि विकास का द्योतक है, जिस क्षेत्र में प्रतिव्यक्ति खाद्यान्न उपलब्धता अधिक होगी उस क्षेत्र में कृषि उत्पादन अधिक है एवं जिस क्षेत्र में खाद्यान्न उपलब्धता कम होगी वहंा कृषि उत्पादन कम होती है। जनसंख्या के आधार पर भी प्रतिव्यक्ति खाद्यान्न में अन्तर देखने को मिलता है। क्षेत्र में कुल औसत प्रतिव्यक्ति खाद्यान्न उपलब्धता 836 ग्राम प्रतिदिन एवं 305 कुन्तल प्रतिवर्ष है। यहां जमानिया विकासखण्ड में 1.07 किग्रा. प्रतिदिन एवं 3.91 कुन्तल प्रतिवर्ष, वाराचवर मंे 964 ग्राम प्रतिदिन एवं 3.56 कुन्तल प्रतिवर्ष, कासिमाबाद में 918 ग्राम प्रतिदिन एवं 3.35 कुन्तल प्रतिवर्ष एवं गाजीपुर विकासखण्ड में खाद्यान्न उपलब्धता 553 ग्राम प्रतिदिन एवं 2.02 कुन्तल प्रतिवर्ष है।

 

उर्वरक-

मिट्टी की उर्वरा शक्ति को बनाये रखने तथा बढ़ाने के लिए जिन रासायनिक तत्वों को मिट्टी में मिलाया जाता है उसे उर्वरक कहते है। उत्पादकता को बढाने के लिए उर्वरक की महत्व पूर्ण भूमिका होती है। क्षेत्र में औसत 133.60 किग्रा/हेक्टेयर उर्वरक का प्रयोग किया जाता है। गाजीपुर विकासखण्ड में 203 किग्रा/हेक्टेयर, सैदपुर 194.10, मुहम्मदाबाद 177.30 एवं भदौरा विकासखण्ड में 72.30 किग्रा/हेक्टेयर उर्वरक का प्रयोग किया जाता है।

 

कृषक एवं कृषि श्रमिक-

कृषि कार्य को सम्पादित करने के लिए श्रमिकों की महत्वपूर्ण भूमिका होती है। क्षेत्र में 72.2ः जनसंख्या कृषि कार्य में संलग्न है। मनिहारी विकासखण्ड में 79ःए सादात में 78.8ःए भांवरकोल में 75.90ः एवं गाजीपुर विकासखण्ड में 59.10ः कार्यशील जनसंख्या कृषि कार्य में संलग्न है।

 

सिंचाई-

कृषि पदार्थ के सफल उत्पादन हेतु पौधों की वृद्वि के लिए मृदा में आवश्यक नमी बनायें रखने के लिए सिंचाई की महती आवश्यक है, (षुक्ला, 2006)9। क्षेत्र में नहरों द्वारा सिंचाई 23.6ः भू-भाग पर की जाती है। भदौरा विकासखण्ड में 80ः भू-भाग, जमानियां में 77.6ःए रेवतीपुर में 36.3, बाराचवर एंव भांवरकोल विकासखण्ड में 0.1ः भू-भाग पर नहरों द्वारा सिंचाई की जाती है। क्षेत्र में नलकूपों द्वारा सिंचाई प्रमुख रूप से की जाती है। यहां नलकूपों द्वारा सिंचाई 76.3ः भू-भाग की जाती है। बाराचवर एंव भांवरकोल विकासखण्ड में 99.9ः-99.9ः  एवं भदौरा विकासखण्ड में 20ः भू-भाग पर सिंचाई की जाती है। क्षेत्र में नलकूपों की संख्या 748 है, जिसमें भांवरकोल में 100, मुहम्मदाबाद में 93, गाजीपुर में 81 एवं जमानियां विकासखण्ड में 14 नलकूप हैं।

 

कृषि यंत्र-

कृषि कार्य में औजारों का महत्व प्रारम्भ से ही रहा है। प्राचीन कृषि औजार अवैज्ञानिक तरीके के ही क्यों न रहे हों, कृषि विकास का इतिहास समय-समय पर नये औजारों के आविष्कारों के साथ ही जुड़ा रहा है। यन्त्रीकरण के द्वारा श्रम एंव मजदूर में वचत उत्पादन में वृद्धि होती है। इसलिए कृषि कार्य में कृषि यंत्रों के महत्व को नकारा नहीं जा सकता है। क्षेत्र में हलों की संख्या 5,589 है। जखनियां विकासखण्ड में 1085, मनिहारी में 666, सादात में 597 एवं गाजीपुर विकासखण्ड हलों की संख्या में 50 है। क्षेत्र में हैरो एवं कल्टीवेटर की संख्या 13,797 है। करण्डा विकासखण्ड में 2,335, कासिमाबाद में 2,028, रेवतीपुर में 1,800 भदौरा में 1,448 एवं गाजीपुर विकासखण्ड में 228 हैरो एवं कल्टीवेटर  है। यहां थे्रशिंग मशीन की संख्या 8491 है। कासिमाबाद विकासखण्ड में 823, सादात में 819, मनिहारी एवं जखनियां में 818-818 एवं गाजीपुर विकासखण्ड में थे्रसिंग मशीन की संख्या 265 है। क्षेत्र में स्प्रेयर मशीन की संख्या 423 है। मुहम्मदाबाद विकासखण्ड में 51, रेवतीपुर में 39 जमानियंा में 32 एवं करण्डा-सादात विकासखण्ड में स्पेयर मशीन की संख्या 16-16 है। क्षेत्र में बुवाई यन्त्रों की संख्या क्षेत्र में 5,422 है। रेवतीपुर विकासखण्ड में 1678, सैदपुर में 1,308, भदौरा में 847 एवं विरनों विकासखण्ड में बुवाई यन्त्रों की संख्या 9 है। यहां टैªक्टरों की संख्या 12,338 है। जमानियां विकासखण्ड में 1,139, सादात में 1,090, भदौरा में 1,032 भाॅवरकोल में 1,001 एवं करण्डा विकासखण्ड में टैªक्टरों की संख्या 363 है।  

 

पंजीकृत कारखाना-

किसी क्षेत्र के सर्वांगीण विकास में औद्योगिक कारखानों की महत्वपूर्ण भूमिका होती है, जिसमें व्यक्तियों को रोजगार के अवसर उपलब्ध होते हैं। क्षेत्र में पंजीकृत कारखानों की कुल संख्या 519 है। गाजीपुर विकासखण्ड में 77, जखनियां में 49, जमानियां में 46, सैदपुर में 39 एवं रेवतीपुर विकासखण्ड में 5 कारखानंे है।

 

कार्यरत श्रमिक-

उद्योगों की स्थिति का महत्वपूर्ण तथ्य इसमें काम करने वाले श्रमिकों का होता है। श्रमिक उद्योग की आत्मा होते है। क्षेत्र में पंजीकृत कारखानों में कुल कार्यरत श्रमिकों की संख्या 1807 है। गाजीपुर विकासखण्ड में 230, कासिमाबाद में 198, जरवनियां में 183 एवं रेवतीपुर विकासखण्ड में 15 श्रमिक कार्यरत है।

 

लघु औद्योगिक इकाई एवं कार्यरत श्रमिक-

क्षेत्र में कुल लघु औद्योगिक इकाईयों की संख्या 14989 है। जखनियंा विकासखण्ड में 1713, जमानियंा में 1571, सादात में 1,354 एवं रेवतीपुर विकासखण्ड में 57 लघु औद्योगिक इकाईयंा कार्यरत है, जिसमें कार्यरत श्रमिकों की संख्या 25,536 है। कासिमाबाद विकासखण्ड में 3,023, जखनियां में 2867, सादात में 2305, सैदपुर में 1,828 एवं रेवतीपुर विकासखण्ड में 142 लघु औद्योगिक इकाई में श्रमिक हैं।

 

खादी ग्रामोद्योग एवं कार्यरत श्रमिक-

क्षेत्र खादी ग्रामोंद्योग के लिए अत्यन्त प्रसिद्ध है। यहां पर कुल खादी ग्रामोंद्योग की संख्या 1,679 है। जमानियंा विकासखण्ड में 525, मुहम्मदाबाद में 327, गाजीपुर में 176, मरहद में 126, विरनों में 125 एवं करण्डा विकासखण्ड में 1 खादी ग्रामोंद्योग है जिसमें कार्यरत श्रमिकों की संख्या 13865 है। जमानियंा विकासखण्ड में 3,362, मुहम्मदाबाद में 2,577, विरनों में 2,456 एवं करण्डा विकासखण्ड में 8 श्रमिक कार्यरत है।

 

पारिवारिक उद्योग-

क्षेत्र के पारिवारिक उद्योग में कुल कार्यशील जनसंख्या का मात्र 5.4ः भाग ही संलग्न है। यहंा वाराचवर एवं कासिमाबाद विकासखण्ड में 6.5-6.5, सैदपुर में 6.30, मुहम्मदाबाद में 6, करण्डा में 6, विरनों में 5.9, जखनियां में 5.9ः  एवं जमानिया विकासखण्ड में 4.1ः जनसंख्या पारिवारिक उद्योग में संलग्न है।

 

डाक एवं तार घर-

समाचार पत्रों के आदान प्रदान हेतु डाकघर का प्रमुख कार्य होता है तथा तारघर के माध्यम से किसी समाचार को टेलीग्राम के द्वारा भेजा जाता है। क्षेत्र में डाकघर एवं तारघर की संख्या 363 है, जिसमें डाकघर 356 तथा तारघर 7 है। जमानियां विकासखण्ड में 32, भावरकोल में 28 एवं विरनों विकासखण्ड में 14 डाक एवं तारघर की सेवाएं है।

 

संचार व्यवस्था-

संचार एक ऐसी प्रक्रिया है जिसके अन्तर्गत एक व्यक्ति से दूसरे व्यक्ति तक सूचना व जानकारी भेजी जाती है। यह अपने विचारों को देने तथा अपने आप को दूसरों द्वारा समझे जाने की प्रक्रिया है। क्षेत्र में सार्वजनिक टेलीफोन व व्यक्तिगत टेलीफोन एवं संचार की संख्या 24,054 है। गाजीपुर विकासखण्ड में 8,481, सैदपुर में 2,354 मुहम्मदाबाद में 2,178 भदौरा में 2,026 एवं विरनों विकासखण्ड में 405 टेलीफोन एवं संचार की सुविधाएं है।

 

परिवहन-

कसी भी क्षेत्र के सर्वांगीण विकास में परिवहन की महत्वपूर्ण भूमिका होती है। परिवहन एक प्रमुख अवस्थापनात्मक तत्व है जिससे क्षेत्र में सामाजिक-आर्थिक विकास का प्रारूप तैयार किया जा सकता है। क्षेत्र में 606 बस स्टाप, टैक्सी स्टैण्ड एवं रेलवे स्टेशन है। मुहम्मदाबाद विकासखण्ड में 68, देवकली में 51, सैदपुर में 46, भावरकोल में 47, कासिमाबाद में 43 एवं जमानियां में 42 एवं रेवतीपुर विकासखण्ड में 20 परिवहन की सुविधाएं है।

 

प्रति लाख जनसंख्या पर पक्की सड़कों की लम्बाई-

क्षेत्र में प्रति लाख जनसंख्या पर पक्की सड़कों की लम्बाई का औसत 115.2 किमी. है। करण्डा विकासखण्ड में 144.4 किमी., मरदह में 138, भावरकोल में 130.4, सादात में 130, मुहम्मदाबाद में 125.6 एवं रेवतीपुर विकासखण्ड में प्रति लाख जनसंख्या पक्की सड़कों की लम्बाई 90.4 किमी. है।

 

पक्की सड़कों की लम्बाई (किमी.में)-

किसी भी क्षेत्र के सर्वांगीण विकास में परिवहन की महत्वपूर्ण भूमिका होती है जबकि परिवहन के साधनों के लिए पक्की सड़कों के महत्व को समन्वित ग्रामीण विकास में नकारा नहीं जा सकता है। क्षेत्र में पक्की सड़कों की कुल लम्बाई 3230 किमी. है। सैदपुर विकासखण्ड में 250 किमी., सादात में 238, मुहम्मदाबाद में 235, मनिहारी में 223 एवं रेवतीपुर विकासखण्ड में 137 किमी पक्की सड़कें है।

 

विद्युतकृत ग्राम-

क्षेत्र में औद्योगिक ईकाइयों के संचालन हेतु कृषि एवं सिंचाई आदि कार्यों के सम्पादन हेतु विद्युत की महती उपयोगिता है। अतः क्षेत्र के ग्रामीण क्षेत्रों में मात्र 35.40ः ग्राम विद्युतकृत है। रेवतीपुर एवं भदौरा विकासखण्ड में 100-100, जमानियां में 74.00,  करण्डा मंे 40.40, सादात में 38.80, एवं विरनों विकासखण्ड में 22.70ः ग्राम विद्युतकृत है।

 

बैंकिंग व्यवस्था-

किसी क्षेत्र में मुद्रा संचय का कार्य बैंकिग व्यवस्था द्वारा किया जाता है। यहां पर कुल बैंकों की संख्या 109 है। देवकली विकासखण्ड में 9, जमानियां में 8, मनिहारी में 8, सैदपुर में 8, भावरकोल में 8, जमानियां में 8 एवं विरनों-मरदह-गाजीपुर-करण्डा विकासखण्ड के ग्रामीण क्षेत्र में 5-5 बैंक की सुविधाएं हंै।

 

कीटनाशक विक्रय केन्द्र-

कृषि फसलों की सुरक्षा हेतु उत्पादन हेतु कीटनाशक दवाओं की अहम भूमिका होती है। क्षेत्र में कुल कीटनाशक विक्रय केन्द्रों की संख्या 224 है। कासिमाबाद में 19, विरनों में 18, मुहम्मदाबाद में 18, जमानियंा में 18 एवं भंावरकोल विकासखण्ड में कीटनाशक विक्रय केन्द्रं 9 है।

 

बीज विक्रय केन्द्र-

कृषि अवस्थापनात्मक तत्वों में उत्तम किस्म के बीज महत्वपूर्ण भूमिका निभातें है, कृषि का आधुनिकीकरण करने के लिए अधिक उपज देने वाले बीज अत्यन्त महत्वपूर्ण होते है। कृषि के क्षेत्रों में आयी क्रान्ति में नये बीजों तथा उन्नत किस्मों का निर्धारण किया गया। वर्तमान में ऐसे बीजों का विकास किया गया है जो प्रति हेक्टेयर अधिक मात्रा में उपज देने में सक्षम है। उन्नतशील बीजों ने अपनी उच्च उत्पादिता, उर्वरक के प्रति अनुकूल अनुक्रिया वौनी पौध ऊंचाई आदि विशेषताओं के कारण फसलों की उपज बढ़ाने की नवीन संभावनाओं का प्रादुर्भाव किया है। उन्नतशील बीजों के प्रयोग से हम खाद्यान्न के क्षेत्र में आत्मनिर्भर बन सकते है। अधिक उत्पादन करके उसका निर्यात भी कर सकते हैं। उन्नतशील बीजों के विक्रय केन्द्रों की संख्या 242 है। कासिमाबाद विकास केन्द्र में 22, जमानियां में 21, मनिहारी-  मुहम्मदाबाद-वाराचवर जखनिया में 17-17, एवं भावरकोल विकासखण्ड में 10 बीज विक्रय केन्द्र है।

 

उर्वरक विक्रय केन्द्र-

कृषि विकास प्रक्रिया में उर्वरक का महत्व इस तथ्य से ज्ञात होता है कि उनके उपयोग से उत्पादन अनुक्रिया काफी प्रभावित होती है। क्षेत्र में उर्वरक विक्रय केन्द्रों की संख्या 232 है। गाजीपुर एवं जमानियां विकासखण्ड में 18-18, मुहम्मदाबाद-वाराचवर में 17-17, मरदह-सादात में 16-16, एवं सैदपुर विकासखण्ड में 10 उर्वरक विक्रय केन्द्र है।

 

सरकारी समितियां-

कृषि उत्पादन को अधिक उपयोगी और उपभोग्य बनाने के लिए सहकारी समितियों का होना अत्यवश्यक है, जब कृषकों को उनकी मेहनत के अनुरूप मूल्य प्राप्त नहीं होता है तो उनकी आर्थिक स्थिति विगड़ जाती है, जिससे उसे आगे दूसरी फसल के लिए धन की आवश्यकता होती है। धन को ऋण के रूप में दिलवाने की व्यवस्था इन संस्थाओं में होती है। सहकारी समितियों का विशेष महत्व होता है, जिससे उचित लागत पर कृषकों को बीज, कृषि यन्त्र व उपकरण खाद तथा उर्वरक की प्राप्ति हो जाती है। ये सहकारी समितियां उपभोक्ताओं की आवश्यकता की पूर्ति एवं किसानों की उपज का उचित मूल्य प्रदान करती है। क्षेत्र में सहकारी समितियों की कुल संख्या 182 है। कासिमाबाद विकास खण्ड में 17, जमानियां में 15, मनिहारी में 14 एवं सैदपुर विकासखण्ड में 6 सहकारी समितियंा है।

 

शिक्षा व्यवस्था-

शिक्षा सामाजिक-आर्थिक परिवर्तन की अन्तर्धारा है। किसी भी क्षेत्र के विकास का आधार मानव है। यदि मानव शिक्षित होगा तभी क्षेत्र का सुनियोजित विकास होगा। कृषि क्षेत्र में यदि कृषक शिक्षित है तो कृषि यंत्रों का उचित प्रयोग करके ग्रामीण विकास कर सकता है। औद्योगिक क्षेत्र में कुशल श्रमिक ही औद्योगिक विकास करके क्षेत्र का विकास कर सकता है। क्षेत्र में प्राथमिक विद्यालयों की संख्या 2,963 है। सादात विकासखण्ड में 185, देवकली में 183 जमानियां में 182, सैदपुर में 179 एवं रेवतीपुर विकासखण्ड में 100 प्राथमिक विद्यालय है। क्षेत्र में पूर्व माध्यमिक विद्यालयों की संख्या 543 है। सैदपुर विकासखण्ड में 55, देवकली में 48 सादात 46 एवं भावरकोल विकासखण्ड में 17 पूर्व माध्यमिक विद्यालयहै। यहां पर माध्यमिक विद्यालयों की संख्या 532 है। जखनियां विकासखण्ड में 100, देवकली में 80, सादात में 61, सैदपुर में 60 एवं वाराचवर, कासिमाबाद विकासखण्ड में 11-11 माध्यमिक विद्यालय हंै। स्नातक एवं स्नातकोŸार महाविद्यालय की संख्या 106 है। सादात एवं सैदपुर विकासखण्ड में 12-12, जखनियां में 11, गाजीपुर में 10, जमानिया में 8, मनिहारी में 7 एवं भदौरा, भावरकोल एवं विरनों विकासखण्ड में 4-4 स्नातक स्नातकोŸार महाविद्यालय है।

 

चिकित्सा व्यवस्था-

किसी भी क्षेत्र का संतुलित विकास स्वस्थ्य मानव के क्रिया-कलापों द्वारा संभव है। मानव को स्वस्थ्य रखने के लिए अच्छी चिकित्सा व्यवस्था की आवश्यकता होती है। पशुओं के विकास के लिए एवं उनकी सुरक्षा हेतु चिकित्सा अनिवार्य तत्व है, जो सामाजिक विकास का नियामक है।

 

चिकित्सालय-

क्षेत्र में चिकित्सालयों की कुल संख्या 69 है। मुहम्मदाबाद विकासखण्ड में 7, मनिहारी, गाजीपुर में 6-6 एवं रेवतीपुर एवं भदौरा विकासखण्ड में मात्र 2-2 चिकित्सालय है। यहां पर प्राथमिक एवं सामुदायिक स्वास्थ्य केन्द्र की कुल संख्या 62 है। रेवतीपुर, देवकली एवं विकासखण्ड में 5-5, जखनिया, विरनों, मरदह एवं जमानिया में प्राथमिक एवं सामुदायिक स्वास्थ्य केन्द्र 3-3 है।

 

मातृ शिशु कल्याण केन्द्र-

इस कार्यक्रम के अन्तर्गत षिषु पंजीकरण गर्भवती महिलाओं का किया जाता है। गर्भावस्था के दौरान महिलाओं की जांच की जाती हैं एवं उन्हें संतुलित आहार हेतु सुझाव दिया जाता है। सुरक्षित प्रसव के समय सुरक्षित प्रसव प्रषिक्षित नर्सो द्वारा कराने की सुविधा है। बच्चे के जन्म के उपरान्त  उपकेन्द्र के ए.एन.एम. द्वारा जन्म के बाद की सेवाएं दी जाती है। मां को प्रसव के बाद स्वास्थ्य षिक्षा एवं इलाज किया जाता है। क्षेत्र में मातृ शिशु कल्याण केन्द्र एवं उप केन्द्रों की संख्या 395 है। मुहम्मदाबाद विकासखण्ड में 22, सादात, सैदपुर एवं कासिमाबाद में 28-28 देवकली में 27 एवं करण्डा विकासखण्ड में मातृ शिशु कल्याण केन्द्र एवं उप केन्द्रों की संख्या 18 है।

 

आंगनबाड़ी केन्द्र-

ग्रामीण क्षेत्र में महिलाओं को उच्च जीवन स्तर एवं उन्हें साक्षर बनाने के लिए आगनबाड़ी की व्यवस्था की गयी हैं। क्षेत्र में कुल आगनबाड़ी केन्द्रों की संख्या 2108 है। जमानियां विकासखण्ड में 165, देवकली में 153, सैदपुर में 152, मुहम्मदाबाद में 146 कासिमाबाद में 145 एवं विरनों विकासखण्ड में 93 आंगनबड़ी केन्द्र हंै।

 

पशु चिकित्सालय-

क्षेत्र में पशु चिकित्सालयों की संख्या 29 है। सादात एवं कासिमाबाद विकासखण्ड में 3-3 वाराचवर, जमानियां, विरनों, भांवरकोल, मुहम्मदाबाद एवं गाजीपुर विकासखण्ड में 1-1 पशु चिकित्सालय हैं। यहां पर पशुधन सेवा केन्द्र एवं कृत्रिम गर्भाधान केन्द्रों की संख्या 57 है। गाजीपुर विकासखण्ड में 7 मुहम्मदाबाद में 5, मरदह, भांवरकोल में 5-5 एवं सादात, भदौरा विकासखण्ड में 1-1 कृत्रिम गर्भाधान केन्द्र है।

 

मनोरंजन-

किसी भी क्षेत्र के सामाजिक विकास में मनोरंजन के साधनों की महत्वपूर्ण उपादेयता होती है। मनोरंजन के साधनों द्वारा किसी भी विषय पर दी गयी जानकारी क्षेत्र वासियों को मिल जाती है। साथ ही मनोरंजन से मनुष्य अपने स्वास्थ्य की देख भाल अच्छी तरह से कर सकता है। क्षेत्र में कुल मनोरंजन केन्द्रों की संख्या 32 है। गाजीपुर विकासखण्ड में 4, मुहम्मदाबाद जमानियां सादात में 3-3 एवं भदौरा, विरनों, मरदह, करण्डा एवं वाराचवर विकासखण्ड में 1-1 मनोरंजन केन्द्र है।

 

इस प्रकार क्षेत्र में समन्वित ग्रामीण विकास की दशाओं को ज्ञात करने के लिए ग्रामीण विकास के सभी चरों (कृषि विकास, औद्योगिक विकास, अवस्थापनात्मक विकास एवं सामाजिक विकास के चर) के मूल्यों को जोड़कर समन्वित ग्रामीण विकास स्तर ज्ञात किया गया है। समन्वित ग्रामीण विकास स्तर ज्ञात करने के लिए इन चरों का विकास खण्डों के अनुसार चरों के मूल्यों का औसत एवं प्रमाणिक विचलन ज्ञात करके सूत्र द्वारा प्रत्येक चर र्का ैबवतम ज्ञात किया गया है।र्

 ैबवतम त्र ग्.ग्-

 

ग् त्र विकास खण्ड अनुसार चरों का मूल्य

ग्-त्र चरों का औसत मूल्य

 

समन्वित ग्रामीण विकास स्तर ज्ञात करने के लिए इन चरों का विकास खण्डों के अनुसार चरों के मूल्यों का औसत एवं प्रमाणिक विचलन ज्ञात करके प्रत्येक चर र्का ैबवतम ज्ञात किया गया है। विकास खण्डों के अनुसार सभी चरों के मूल्यों को जोड़कर समन्वित ग्रामीण विकास स्तर ज्ञात करने के लिए समन्विर्त  मूल्य ज्ञात किया गया है, जिसका परास 0 से धनात्मक 19.94 एवं 0 से ऋणात्मक 14.55 है। इसे तालिका संख्या 1.1 में विभिन्न विकास स्तरों में विभाजित करके चित्र संख्या 1.1 में प्रदर्शित किया गया है।

   

अति उच्च विकास स्तर-

इसके अन्तर्गत क्षेत्र के 2 विकासखण्ड जमानियां एवं मुहम्मदाबाद है, जिनका विस्तार उŸारी मध्यवर्ती एवं दक्षिणी भाग में है। ये क्षेत्र कृषि, औद्योगिक, अवस्थापनात्मक एवं सामाजिक विकास में अग्रणी होने के कारण समन्वित ग्रामीण विकास में अति उच्च विकास स्तर के हैं।

 

उच्च विकास स्तर-

इसके अन्तर्गत क्षेत्र के 2 विकासखण्ड कासिमाबाद, एवं देवकली सम्मिलित है, जिनका विस्तार उŸारी एवं दक्षिणी-पश्चिमी क्षेत्र में है। ये क्षेत्र समन्वित ग्रामीण विकास में उच्च विकास स्तर के हैं जहां पर कृषि, औद्योगिक, सामाजिक एवं अवस्थापनात्मक विकास स्तर उच्च श्रेणी है, जबकि देवकली औद्योगिक विकास में पिछडा हुआ है, लेकिन कृषि, सामाजिक एवं अवस्थापनात्मक विकास में उच्च विकास स्तर का है।

 

मध्यम विकास स्तर-

इसके अन्तर्गत ग्रामीण क्षेत्र के 5 विकासखण्ड सैदपुर, सादात, मनिहारी, देवकली एवं गाजीपुर सम्मिलित है, जिनका विस्तार पश्चिमी एवं उŸारी-पश्चिमी तथा मध्यवर्ती भाग में है। यहां पर कृषि, अवस्थापना, औद्योगिक एवं सामाजिक विकास की दशाएं उच्च स्तर की जबकि सादात एवं सैदपुर में अवस्थापनात्मक विकास निम्न स्तर की है। गाजीपुर में कृषि विकास का स्तर न्यून पाया जाता है, लेकिन मनिहारी में समन्वित ग्रामीण विकास की दशाएं उच्च स्तर की पायी जाती है।

 

मध्यम न्यून विकास स्तर-

इसके अन्तर्गत ग्रामीण क्षेत्र के 3 विकासखण्ड बाराचवर, मरदह एवं विरनों सम्मिलित हंै, जिनका विस्तार क्षेत्र के उŸारी-पूर्वी एवं उŸारी भाग में है। इन क्षेत्रों में समन्वित ग्रामीण विकास की दशाएं निम्न स्तर की है। यहां पर सामाजिक विकास, औद्योगिक विकास, अवस्थापनात्मक एवं कृषि विकास मध्यम न्यून स्तर का पाया जाता है जिसके कारण यहां पर समन्वित ग्रामीण विकास कम विकसित है।

 

न्यून विकास स्तर-

इसके अन्तर्गत क्षेत्र के 4 विकासखण्ड भावरकोल, भदौरा, रेवतीपुर एवं करण्डा सम्मिलित है, जिनका विस्तार उत्तरी-पूर्वी एवं दक्षिणी क्षेत्र में है। यहां समन्वित ग्रामीण विकास का स्तर अति न्यून है। यहां पर समन्वित ग्रामीण विकास के सभी चरों का स्तर न्यून पाया जाता है जो यहां के  समन्वित ग्रामीण विकास में परिलक्षित होता है।

 

स्पष्ट है कि क्षेत्र में समन्वित ग्रामीण विकास की दशाएं सर्वत्र एक समान नहीं है। यहां के सभी भागों में ग्रामीण विकास के चर एक समान नहीं पाये जाते है, जिसके फलस्वरूप समन्वित ग्रामीण विकास एक समान नहीं है। क्षेत्र के उŸारी उच्च भू-भाग में समन्वित ग्रामीण विकास की दशाएं उच्च स्तर की पायी जाती है। परन्तु उŸारी पूर्वी एवं दक्षिणी पश्चिमी मध्यवर्ती निम्न भू-भाग में ग्रामीण विकास की दशाए न्यून स्तर की है।

 

संदर्भ सूची -

1.    Sharma, S.K. and Malhotra, S.L. (1977): Integrated Rural Development Approaches strategy and  Perspectives,  Abhinav Pub. New Delhi . P.30.

2.    Pandey, J. N.  (1985) A Strategy for Rural Development in V.K. Srivastav Commercial Ativities and Rural Development in South Asia P.P 441-444.

3.    Hartshorne, R (1960) : Perspective on the nature of Geography P 136.

4.    Pandey J.N. and Tiwari Rekha (1989): Integrated Area Development in Proceeding of National Symosium on Spatial Inequality an Regional Development Allahabad.

5-      रेखा, तिवारी (1998) रू प्रतापगढ़ तहसील में केन्द्र स्थल एवं क्षेत्रीय अन्तः प्रक्रियायें उ.भा.भू.. अंक 34 संख्या 1-2 पृष्ठ संख्या 89-99

 

6-   आर्य राजेश कुमार (1999)रू मालवा पठार (मध्य प्रदेष) में कृषि आधारित उद्योग एवं ग्रामीण विकास अप्रकाषित शोध प्रबंध भूगोल विभाग दी... गोरखपुर वि.वि. गोरखपुर पृष्ठ संख्या 7-9

7-       यादव, राजेश कुमार (2000) रू ग्रामीण विकास एवं कृषिगत विविधता मनकापुर तहसील (गोण्डा जनपद) काएक प्रतीक अध्ययन अप्रकाषित शोध प्रबंध दी... गोरखपुर

 

8-   यादव, अजीत कुमार (2008)रू  सेवा केन्द्र एवं समन्वित ग्रामीण विकास जनपद गाजीपुर का एक प्रतीक अध्ययन अप्रकाषित शोध प्रबंध दी... गोरखपुर पृष्ठ संख्या 87-102

9-   शुक्ला, अर्पणा (2006)रू रायबरेली जनपद में कृषि का विकास अप्रकाषित शोध प्रबंध कानपुर विष्वविद्यालय, कानपुर पृष्ठ संख्या 221-222

 

Received on 22.11.2014       Modified on 06.12.2014

Accepted on 22.12.2014      © A&V Publication all right reserved

Int. J. Rev. & Res. Social Sci. 2(4): Oct. - Dec. 2014; Page 239-246